लिख के लाया था कागज पे हज़ारों परेशानियाँ,
एक दोस्त ने काग़ज़ की पतंग बना के उड़ाना सिखा दिया ।
गीला था मेरा दामन खुद के ही आसुओं से,
उसने तेज हवाओं में दामन सुखाना सिखा दिया।
बंधा हुआ था मैं दस तरह कि उलझनों में,
सुलझा कर दोस्त में उनका बाना बना दिया।
दब रहा था मैं सामाजिक अपेक्षाओं में,
दोस्त ने मुझे चल हट कहना सिखा दिया ।
अब डरता नहीं हूँ मैं किसी तूफान से,
दोस्त ने मुश्किलों से लड़ना सिखा दिया।