मैने सीखी है तुझसे, ईश्क की ईतंहां
तू भी मेरे दर्द की गहराई में, जी के तो कभी देख
दिये हैं जो ज़ख्म, जमाने ने तुझे
वो मेरे सीने पे, सी के तो कभी देख
दूर रह कर कहता है के, तू खुश है
अपने आँसू को मेरी आँख में, आते तो कभी देख
क्यूँ लगता है तुम्हे डर, पंख फैलाने में
तू तूफां में परिंदों को, नहाते तो कभी देख
तन्हा जीत सकते ज़माना तुम, ये यकीं हैं मुझको
लेकिन मेरी बाहों में समाकर, भी तो कभी देख
रोज़ उठाता है जो हाथ, उसके सज़दे में
उनमें मेरी आमीन की आहट, सुन के तो कभी देख