Sunday, April 15, 2007

DON'T LEAVE ME ALONE

कौन समझता है इस तनहाई को
एक खौफ सा खाए जाता है
एक दर्द-ए-दिल रहता है
और वक़्त निकलता जाता है


दोस्तों की इस महफ़िल में
एक दोस्त ढूंढता रहता हूँ
वो ओझल निगाहों से हो जाता है
और मैं सोचता रह जाता हूँ


जिनकी दोस्ती बग़ैर आँखें रोंई हैं
वही शख्शियत हमने खोई हैं
कही तुम भी जुदा ना हो जाओ
बस यही दर्द-ए-नासुर सताता है


शाम होते होते तनहाई की स्याह चादर छा जाती है
सिर्फ तुम्हे सोचते हैं
सिर्फ तुम्हारी याद तड़फाती है
जब बात करता है कोई और तुम्हारी

तो एक आग सी लग जाती है
दरिया-ए-अशकों से बुझाता हूँ
तो कमबख्त भाप बन उड़ जाता है
एक दर्द-ए-दिल रहता है
और वक़्त निकलता जाता है


काश ऐसे हमारे नसीब हों
हो तुमसे दोस्ती, तुम्हारे करीब हों
ग़र ना हो सका ऐसा
मैं जीते जी मर जाऊंगा

----------------

मय तो होगी पर
मयखाना टूट जाएगा
दिल में दर्द तो होगा पर
वक़्त छूट जाएगा

Monday, January 29, 2007

तेरी परझाई (Your Shadow)

मैने सीखी है तुझसे, ईश्क की ईतंहां
तू भी मेरे दर्द की गहराई में, जी के तो कभी देख

दिये हैं जो ज़ख्म, जमाने ने तुझे
वो मेरे सीने पे, सी के तो कभी देख

दूर रह कर कहता है के, तू खुश है
अपने आँसू को मेरी आँख में, आते तो कभी देख

क्यूँ लगता है तुम्हे डर, पंख फैलाने में
तू तूफां में परिंदों को, नहाते तो कभी देख

तन्हा जीत सकते ज़माना तुम, ये यकीं हैं मुझको
लेकिन मेरी बाहों में समाकर, भी तो कभी देख

रोज़ उठाता है जो हाथ, उसके सज़दे में
उनमें मेरी आमीन की आहट, सुन के तो कभी देख